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शिक्षा और नैतिकता का तालमेल ही समृद्ध और सशक्त समाज की नींव रख सकता है : आचार्य रमेश सचदेवा




शिक्षा का उद्देश्य केवल ज्ञान प्रदान करना नहीं है, बल्कि समाज के लिए ऐसे नागरिक तैयार करना है जो नैतिक और जिम्मेदार हों। शिक्षा में नैतिकता का समावेश, विद्यार्थियों को न केवल बौद्धिक रूप से सक्षम बनाता है, बल्कि उन्हें मानवीय मूल्यों से भी जोड़ता है।

आज के प्रतिस्पर्धात्मक युग में नैतिकता की आवश्यकता पहले से कहीं अधिक बढ़ गई है। छात्रों को ईमानदारी, सहिष्णुता, करुणा और जिम्मेदारी जैसे गुण सिखाना, शिक्षा का अनिवार्य हिस्सा होना चाहिए। नैतिक शिक्षा विद्यार्थियों को सही और गलत के बीच अंतर समझने की क्षमता प्रदान करती है, जो उनके निर्णय लेने की प्रक्रिया को सशक्त बनाती है।

शिक्षकों का इस प्रक्रिया में महत्वपूर्ण योगदान होता है। शिक्षक केवल एक पाठ्यक्रम पढ़ाने वाले नहीं होते, बल्कि वे विद्यार्थियों के चरित्र निर्माण में मार्गदर्शक की भूमिका निभाते हैं। वे अपने व्यवहार और आचरण से छात्रों को प्रेरित कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, यदि शिक्षक स्वयं ईमानदारी और अनुशासन का पालन करेंगे, तो छात्र भी इन गुणों को अपनाने के लिए प्रेरित होंगे।

शिक्षा में नैतिकता को बढ़ावा देने के लिए पाठ्यक्रम में नैतिक शिक्षा के लिए विशेष समय निर्धारित करना चाहिए। साथ ही, सह-शैक्षणिक गतिविधियों जैसे कि सामुदायिक सेवा, नैतिक कहानियों पर चर्चा, और समूह गतिविधियाँ भी इसमें सहायक हो सकती हैं।

यदि शिक्षा प्रणाली में नैतिकता को मजबूती से शामिल किया जाए, तो यह न केवल व्यक्तियों को, बल्कि समाज और देश को भी प्रगति की ओर ले जाएगा। नैतिकता से युक्त शिक्षा विद्यार्थियों को एक अच्छा इंसान और एक जिम्मेदार नागरिक बनाने का सबसे प्रभावी साधन है।

लेखक

आचार्य रमेश सचदेवा

ऐजू स्टेप फाउंडेशन 


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